Taali Review: फीके पड़े Sushmita Sen के तेवर, नहीं गूंजी ट्रांसजेंडर पर बनी वेब सीरीज ‘ताली’

Taali Web Series Review: ओटीटी प्लेटफॉर्म जियो सिनेमा पर Sushmita Sen की वेब सीरीज 'ताली' रिलीज हो गई है। इस वेब सीरीज में ट्रांसजेंडर श्रीगौरी सावंत की जिंदगी के अहम पहलुओं को दिखाया गया है।

News Desk
Taali Review: फीके पड़े Sushmita Sen के तेवर, नहीं गूंजी ट्रांसजेंडर पर बनी वेब सीरीज 'ताली'
Taali Review: फीके पड़े Sushmita Sen के तेवर, नहीं गूंजी ट्रांसजेंडर पर बनी वेब सीरीज 'ताली'

Taali Review: ट्रांसजेंडर श्रीगौरी सावंत की जिंदगी पर बनी ये वेब सीरीज ओटीटी प्लेटफॉर्म जियो सिनेमा पर रिलीज हो गई है। इस वेब सीरीज में मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन ने सोशल एक्टिविस्ट श्रीगौरी सावंत की जिंदगी के अहम पहलुओं को दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने एक ट्रांसजेंडर के मन में उठ रहे सवालों को सबके सामने लाने की कोशिश की है। उन्होंने श्रीगौरी सावंत के गणेश से गौरी बनने तक के सफर में आने वाली तमाम परेशानियाें को पर्दे पर दिखाने की कोशिश की है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि क्या ट्रांसजेंडर की जिंदगी पर बनी ये वेब सीरीज देखनी चाहिए? पढ़िए हमारा रिव्यू

ताली का ओवरव्यू

सबसे पहले बात करते हैं ‘ताली’ सीरीज की कहानी की। ताली एक बायोग्राफिकल ड्रामा है, जो कि ट्रांसजेंडर एक्टीविस्ट श्रीगौरी सावंत की जिंदगी पर आधारित है। सीरीज दावा करती है कि इसमें श्रीगौरी के जीवन के हर जरूरी पहलुओं को दिखाया गया है। सीरीज में उनके ट्रांस का पता होने से लेकर बनने तक की पूरी स्टोरी को दिखाया गया है।

गौरी यानी गणेश 13-14 साल की उम्र में घर से भाग गया था, क्योंकि वो अपने पिता के लिए ताउम्र शर्मिंदगी का कारण नहीं बनना चाहता था। यहीं से गणेश के गौरी बनने का सफर शुरू होता है। गौरी ने जिंदगी की हर मुश्किल का सामना किया, हमेशा हालातों से लड़ीं लेकिन कभी ना तो भीख मांगी, ना ही कभी सेक्स वर्कर बनने की राह चुनी।

गौरी ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था, इसकी वजह उनका सुंदर ना होना है शायद। ना तो वो गोरी हैं, ना ही इतनी सुंदर की किसी को लुभा सकें, इसलिए शायद वो बच भी पाईं। और ताली सीरीज यहीं पर पहली बार चूक कर जाती है। मेकर्स गौरी की इस मेन बात पर ही रिसर्च करना शायद भूल गए। क्योंकि सीरीज में असली गणेश के लुक से इतर दिखने वालीं एक्ट्रेस कृतिका देओ हैं।

हालांकि कृतिका ने अपने रोल से पूरा जस्टिफाई किया है, लेकिन आप उसे गणेश से रिलेट करन पाने में असहज महसूस करेंगे। जैसा कि बॉलीवुडिया सिनेमा में अक्सर गोरी रंगत को लेकर एक ऑब्सेशन देखा गया है, वो यहां भी दिखाई पड़ता है। एक व्यूअर के तौर पर ये बहुत अखरता है। क्योंकि गणेश यानी गौरी का बचपन ऐसी छरहरी काया-गोरी रंगत वाला नहीं था, जैसा कि पोट्रे कर दिया गया है। ऐसे में आपकी सोच रिएलिटी से परे हो जाती है।

कुछ ऐसी है वेब सीरीज की कहानी

जब एक बच्चे का जन्म होता है तब मां-बाप डॉक्टर से पूछते हैं…बेटा हुआ है या बेटी…गौरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब उसका जन्म हुआ तब डॉक्टर ने उसके मां-बाप को बताया कि बेटा पैदा हुआ है। मां-बाप खुशी से झूमने लगे। बचपन से ही अपने बेटे गणेश को वो सारी चीजें करने पर मजबूर करने लगे जो समाज के हिसाब से एक लड़के को करना चाहिए। लेकिन, गणेश का मन चूड़ियों को देखकर मचलने लगा।

उसे वीडियो गेम नहीं बार्बी डॉल पसंद आने लगीं। जब गणेश का ये सच उसके पिता के सामने आया तब उन्होंने उसे घर से बाहर निकाल दिया। हमेशा मां-बाप की छत्र छाया में रहा गणेश भटक गया। उसके पिता ने उसके जिंदा होते हुए उसका अंतिम संस्कार कर दिया। अब आगे क्या होगा? वह कहां जाएगा? समाज से कैसे लड़ेगा? गणेश से गौरी कब और क्यों बनेगा? ये सब जानने के लिए आपको वेब सीरीज देखनी पड़ेगी।

किस रफ्तार से बजी ताली

पहला एपिसोड शुरू होता है गौरी के बचपन गणेश से।।।जहां वो मां के आंचल में खुद को सुरक्षित महसूस करता है। उनके जैसे बनने के सपने देखता है, लेकिन पिता की धिक्कारती नजरें उससे बर्दाश्त नहीं होती है। हालांकि बड़ी बहन का साथ मिलता है। पर अचानक हुई मां की मौत के बाद अकेला पड़ा गणेश उस घर को छोड़कर भाग जाता है, और शुरू करता है अपना सफर- ट्रांसजेंडर बनने का।

सीरीज में गौरी की तीन लड़ाई को दिखाने की पुरजोर कोशिश की गई है। पहली लड़ाई- आईडेंटिटी की, दूसरी लड़ाई- सर्वाइवल की, तीसरी लड़ाई- इक्वालिटी की। लेकिन इक्वालिटी की लड़ाई दिखाने के चक्कर में गणेश के गौरी बनने की कहानी कहीं अपना दम तोड़ती नजर आती है।

गणेश का अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की सोच और ट्रांस कम्यूनिटी की तरफ झुकाव को बखूबी दिखाया गया है। लेकिन परिवार का साथ ना मिल पाने का अफसोस और वो शर्मिंदगी, जो समाज के ना अपनाने से मिलता है, उसे ऑडियन्स को फील ना करा पाने की चूक जरूर हो गई है।

आर्या में दमदार एक्टिंग की छाप छोड़ चुकीं सुष्मिता सेन भी कहीं कहीं ढीली पड़ती नजर आई हैं। मसलन, सेक्स चेंज ऑपरेशन का सीन हो या किन्नर की जिंदगी से इन्फ्लुएंस होने का, सुष्मिता हल्की सी लगीं। खासकर उनके आदमी बने रहने का लुक, बहुत ओवरहाइप्ड लगता है। लेकिन वहीं कई डायलॉग सीरीज के ऐसे हैं, जिन्हें जब वो बोलती हैं तो लगता है बस यहीं ये कहानी रुक जाए। जैसे इसी का तो इंतजार था।

सुष्मिता सेन के लिए तालियां और सिर्फ तालियां

वेब सीरीज के निर्माता अर्जुन सिंग्घ बरन और करटक डी निशांदार की हिम्मत की दात देनी पड़ेगी। उन्होंने न सिर्फ मिस यूनिवर्स रह चुकीं सुष्मिता सेन को ट्रांसजेंडर का रोल ऑफर किया बल्कि उन्हें ये किरदार निभाने के लिए राजी भी किया। सुष्मिता को कास्ट करके जितना बेहतरीन काम अर्जुन और करटक ने किया है उससे कहीं ज्यादा काबिल-ए-तारीफ काम सुष्मिता सेन ने किया है।

ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रांसजेंडर की कहानी दिखाने के लिए सुष्मिता सेन को इस वेब सीरीज में सिर्फ एक्टिंग ही नहीं करनी पड़ी थी बल्कि एक ऐसा लुक भी धारण करना पड़ा था जिसके लिए शायद ही कोई और एक्ट्रेस राजी होती। उन्होंने अपना वजन बढ़ाया, ग्लैमर छोड़ कहीं-कहीं अपने चेहरे पर दाढ़ी तक दिखाई। उन्होंने अपने लुक से लोगों को इस कदर प्रभावित कर दिया कि सिर्फ ‘ताली’ का पोस्टर देखकर ही लोग उन्हें छक्का कहने लगे।

फीके पड़े Sushmita Sen के तेवर

गौरी की लड़ाई एक प्रेरणा देने वाली कहानी है। ये कहानी ही इसलिए बन पाई है, क्योंकि ये आसान नहीं है। इससे एक इतिहास जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट में थर्ड जेंडर को मान्यता दिलवाने वाली गौरी, महाराष्ट्र इलेक्शन कमेटी की ब्रांड एम्बैसेडर बनने वाली पहली ट्रांसजेंडर गौरी की आपबीती बयां करना असल में मुश्किल काम है। ये हम और आप जैसे लोगों के लिए समझना उतना ही मुश्किल है, जितना कि एक बच्चे को पढ़ना लिखना सिखाना।

क्योंकि सब कुछ शुरू से जो शुरू करना होता है। ऐसे में ताली के डायरेक्टर रवि जाधव ने एक बड़ा बीड़ा उठाते हुए इस सीरीज का निर्माण किया। उनके कंधों पर इस पूरी कम्यूनिटी का भार था, जिसे वो पूरी तरह से सही मुकाम तक पहुंचा नहीं पाए। सीरीज में बहुत सी जगह ऐसी है, जहां आपको लगेगा कि कोई ड्रामेटिक सीन देखने को मिलेगा, तो आप निराश महसूस करेंगे।

फिर आप ऐसे में सोचेंगे कि शायद डायरेक्टर ने सेंसिटिव सब्जेक्ट देखते हुए ऐसा किया होगा, पर आपको वो भी होता दिखाई नहीं देता है। फिर आप किसी दमदार सीन के इंतजार में पूरे एपिसोड को खत्म कर डालेंगे। यकीन मानिए चार एपिसोड तो हमने ही उबासी मारते हुए निकाले हैं।

सीरीज में वो आपाधापी, असमंजस जरूर दिखाए गए हैं, जिससे एक ट्रांस कम्यूनिटी गुजरती है। लेकिन उसे दर्शाने का तरीका थोड़ा लचर है। आप विक्टिम से ज्यादा बगल के लोगों से अपने आप को कनेक्ट कर लेंगे। एक आम आदमी होने के नाते आप सोच पड़ेंगे कि हां हमारे घर में होता तो हम भी वही सलूक करते या ऐसा ही तो होता। कौन इतनी जल्दी एक्सेप्ट कर पाता है। वहीं जिस सीन का आपको बेहद बेसब्री से इंतजार रहता है, वो है गणेश के गौरी बनने का।

उस सीन को इतने आराम से निकाल दिया गया है कि आप उसका इम्पैक्ट दूर दूर तक फील नहीं कर पाएंगे। एक सेमिनार के दौरान अपनी ही कम्यूनिटी से बेइज्जत होने के बाद गणेश डिसाइड करता है कि वो सेक्स चेंज ऑपरेशन करवाएगा। लेकिन उसके इस फैसले का आप पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि वहां ना तो बैकग्राउंड म्यूजिक ऐसा कमाल का है कि आपकी नजर टिक जाए और ना ही सुष्मिता के डायलॉग में दम है।

तमाचे की तरह लगते हैं वेब सीरीज के डायलॉग्स

सुष्मिता सेन के अलावा नितीश राठौर, अंकुर भाटिया, ऐश्वर्या नारकर, हेमांगी कवि और सुव्रत जोशी ने भी कमाल का काम किया है। क्षितिज पटवर्धन ने काफी बेहतरीन और दिल छू लेने वाले डायलॉग्स लिखे हैं। ये डायलॉग्स किसी बड़े तमाचे की तरह आपके मुंह पर आकर लगते हैं। वहीं ऑडियो एडिटर्स ने सुष्मिता सेन की आवाज पर कमाल का काम किया है। उन्होंने सुष्मिता की ओरिजनल आवाज को रखते हुए उनमें इस कदर मॉड्यूलेशन किए हैं कि वह सचमें मर्दाना आवाज लगने लगती है।

बहुत चीजों में रह गई कमी

सुष्मिता सेन ने ट्रांसजेंडर गौरी सावंत की भूमिका को बहुत ही प्रभावी ढंग से निभाया है। वेब सीरीज की पूरी बागडोर उन्हीं के कंधों पर टिकी है और इस किरदार के साथ पूरी तरह से उन्होंने न्याय करने की कोशिश भी की है। सीरीज के बाकी कलाकारों में नितेश राठौर, अंकुर भाटिया, कृतिका देव, ऐश्वर्या नारकर, विक्रम भाम और अनंत महादेवन अपनी अपनी भूमिकाओं पर खरे उतरे हैं।

सीरीज की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। खास करके टॉप एंगल से लिए गए शॉट्स तो बहुत ही खूबसूरत है। सीरीज का संपादन सुस्त है। बहुत सारे ऐसे दृश्य है कि उन्हें फास्ट फॉरवर्ड करने का मन करता है। ऐसे दृश्यों को एडिट करके सीरीज को और भी रोचक बनाया जा सकता था। सीरीज की पृष्ठभूमि चूंकि महाराष्ट्र है और इसका कलेवर भी पूरी तरह मराठी है लिहाजा उत्तर भारतीय दर्शको को इसमें अपने स्वादानुसार रस की कमी दिख सकती है।

‘ताली’ के कुछ छह एपिसोड हैं। हर एपिसोड तकरीबन 30 मिनट का है। यानी पूरी सीरीज मात्र तीन घंटे की है। लेकिन, इस तीन घंटे में इमोशनल ड्रामा बहुत कम देखने को मिला। जैसे ही एक एपिसोड माहौल बनाना शुरू करता है वैसे ही 30 मिनट खत्म हो जाते हैं। एपिसोड के खत्म होते ही कहीं न कहीं कनेक्ट भी छूट जाता है। ऐसे में वेब सीरीज वो समा नहीं बांध पाती जो उसे बांधना चाहिए। श्रीगौरी सावंत की जिंदगी में कई सारी घटनाएं हुई हैं। लेकिन, उन घटनाओं को उतनी अच्छी तरीके से नहीं दिखाया गया है। कहीं-न-कहीं इसमें निर्देशक और म्यूजिक डायरेक्टर की गलती है। 

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