IAS Success Story: बिना कोचिंग पढाई कर वंदना बनी IAS, घर वालो से छिपकर करती थी UPSC की तैयारी

IAS Success Story: वंदना का परिवार नहीं चाहता था कि वह बहुत पढ़ाई-लिखाई करे। अपने सपने को पूरा करने के लिए वंदना ने बहुत संघर्ष किया। शुरू से ही वह आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं। इसलिए घर वालो से छिपकर और बिना कोचिंग के हर रोज 12 घंटे बधाई करती थी।

News Desk
IAS Success Story: बिना कोचिंग पढाई कर वंदना बनी IAS, घर वालो से छिपकर करती थी UPSC की तैयारी
IAS Success Story: बिना कोचिंग पढाई कर वंदना बनी IAS, घर वालो से छिपकर करती थी UPSC की तैयारी

IAS Vandana Singh Chauhan: UPSC परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवार, IAS, IPS और अन्य प्रतिष्ठित प्रशासनिक पदों को पाने के लिए अपने जीवन के कई वर्षों को पढ़ाई में बिताते हैं। इन्स्पायरिंग सफलता की कहानियों में एक ऐसी ही है वंदना सिंह चौहान की कहानी। वंदना को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके परिवार ने बहुत विरोध किया। IAS अफसर बनकर उन्होंने साबित कर दिया है कि समर्पण और मेहनत के साथ किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

हरियाणा के नसरुल्लागढ़ की रहने वाली वंदना सिंह चौहान ने हिंदी मीडियम से पढ़ाई की थी और 2012 में यूपीएससी में आठवीं रैंक प्राप्त की थी, हालांकि उनके परिवार ने एक समय उनकी पढ़ाई को रूढ़िवादी विचारधारा के कारण रोका था। वास्तव में, परिवार ने वंदना को अधिक पढ़ाई-लिखाई करना नहीं चाहा। अपने सपने को पूरा करने के लिए वंदना ने बहुत संघर्ष किया।

शुरू से बनना चाहती थीआईएस ऑफिसर

शुरू से ही वह आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं। वंदना ने 4 अप्रैल 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव में जन्म लिया था. उनके परिवार में लड़कियों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी। इंटरव्यू में वंदना के पिता महिपाल सिंह चौहान ने बताया कि गांव में कोई अच्छी शिक्षा संस्था नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपने बेटे को बाहर पढ़ने के लिए भेजा था।

लेकिन वंदना ने भी अधिक पढ़ना चाहा। वंदना के पिता बताते हैं, “उस दिन के बाद से ही उसने रट लगा ली थी कि मुझे कब पढ़ने भेजोगे? ”शुरूआत में महिपाल सिंह चौहान ने बेटी पर कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक दिन वंदना के सब्र का बांध टूट गया तो वे गुस्से में आकर पिता से कहा कि मैं लड़की हूं, इसलिए मुझे पढ़ने नहीं भेज रहे।

पिता ने दिया वंदना सिंह चौहान का साथ

बेटी की यह बात पिता को इस कदर चुभी कि उन्होंने वंदना का एडमिशन मुरादाबाद के एक गुरुकुल में करवा दिया, हालांकि वंदना की पढ़ाई को लेकर उनके दादा, ताऊ और चाचा समेत परिवार के सभी सदस्य महिपाल सिंह के फैसले के खिलाफ थे, लेकिन अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय के आड़े वंदना ने कभी किसी को नहीं आने दिया.

बिना कोचिंग के हर रोज करती थी 12 घंटे पढाई

12वीं की परीक्षा के बाद वंदना ने घर पर रहकर यूपीएससी की तैयारी की। उस समय वह लॉ में भी पढ़ाई कर रही थीं। वह प्रतिदिन 12 से 14 घंटे पढ़ाई करती थीं। इंटरव्यू में वंदना की मां मिथिलेश ने बताया कि गर्मियों में भी उसने अपने कमरे में कूलर नहीं लगाया था। क्योंकि उन्होंने कहा कि कमरे में ठंडक से नींद आती है।

महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा स्रोत

वंदना की सक्सेस उन गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी है जो शिक्षा तक पहुंचने में, विशेष रूप से अंग्रेजी माध्यमिक स्कूलों में, बाधाओं का सामना करती हैं। वर्तमान में, वंदना अल्मोड़ा जिले के जिला प्रबंधक (DM) के रूप में सेवा कर रही हैं। पिछले साल, उन्हें डीएम के रूप में नियुक्ति को मान्यता प्राप्त करने के लिए कलेक्ट्रेट में गार्ड ऑफ हॉनर से सम्मानित किया गया।

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